Bihar News : “दुनिया में कुछ मिनटों के लिए आया तो पता चला कि जन्म बिहार में हुआ है, जहां की नीतीश कुमार सरकार विश्व के दूसरे सबसे बड़े अस्पताल का उद्घाटन कर चुकी है। मरने से पहले मुझे पता चला कि जहां जन्म हुआ, वहां मेरी मां की जांच के लिए अल्ट्रासाउंड की सुविधा नहीं थी। उसी दौड़भाग में मां थकीं और मैं हारा।”- जन्म के कुछ मिनट बाद मरने वाला बच्चो कुछ बोल सकता, तो यही बोलता।
Bihar Government Hospital का सच पूरा पढ़िए, क्योंकि इंसान की जान के मायने हैं
काश! मैं बच जाता। खैर, कोई दूसरा नहीं मरे… इसलिए लिख रहा हूं। मेरा जन्म इसी ई-रिक्शे पर हुआ। कुछ ही मिनट के लिए धरती पर आया और फिर अव्यवस्था की हालत देखकर लौट भी गया। इन कुछ पलों में मुझे जो पता चला, वही बता रहा हूं। पहली बात यह कि मैं बिहार की धरती पर पैदा हुआ। वही बिहार, जहां पिछले दिनों विश्व के दूसरे सबसे बड़े अस्पताल के पहले चरण का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उद्घाटन किया था। उसी बिहार में, जहां के स्वास्थ्य मंत्री भारतीय जनता पार्टी वाले मंगल पांडेय हैं। वही बिहार, जहां एक बेटी के जन्म से लेकर शादी तक सरकार कई तरह की योजनाओं में पैसे-सुविधाएं देती है। अब असल वाकये पर आइए…
मैं रविवार को पैदा हुआ और फिर अनंत यात्रा पर भी निकल गया। मेरा जन्म पटना प्रमंडल के रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम में सड़क पर ई-रिक्शा में सदर अस्पताल की सीढ़ियों के सामने हुआ, जहां की तस्वीर दिख रही है। मेरा जन्म मेरी मां को खुशी दे पाता, इससे पहले मेरी मौत के साथ उसे जीवनभर का कष्ट नसीब हो गया। मेरी मां रोहतास जिले के करगहर प्रखंड अंतर्गत कौवाखोंच गांव निवासी आसतोरण देवी हैं। मैंने सुना कि बिहार में चुनाव होगा तो यह करगहर सीट हॉट सीट होगी, क्योंकि यहां 2015 में नीतीश कुमार की पार्टी से विधायक थे तो 2020 में कांग्रेस के विधायक बने। दोनों में से किसी को इस घटना से कोई फर्क नहीं पड़ा होगा, यह मुझे पता है।
खैर, मैं फिर मां पर आता हूं। वह नौ महीने की गर्भवती थीं। गर्भावस्था के दौरान भी करगहर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आकर नियमित जांच करवा रही थीं। मुझे गर्भ में रहते न कभी लगा और न मेरी मां को यह एहसास होगा कि मैं उससे भी बड़े, यानी सदर अस्पताल की चौखट पर जन्म लेकर कुछही देर में दुनिया से चला भी जाऊंगा। गर्भावस्था का समय पूरा होने को आया तो मैं दुनिया देखने के उत्साह में था। करगहर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से सासाराम सदर अस्पताल के लिए मां को रेफर कर दिया गया।
वह जब इलाज के लिए यहां पहुंचीं तो चिकित्सकों ने अल्ट्रासाउंड कर मेरा मूवमेंट और मेरी हालत देखने की सलाह दी। बता दिया गया कि सदर अस्पताल में अल्ट्रासाउंड मशीन तो आकर पड़ी है, लेकिन इसके लिए तकनीशियन या जानकार डॉक्टर नहीं हैं। मां दर्द से परेशान थी, लेकिन स्वास्थ्य व्यवस्था ऐसी है कि यहां से निजी अल्ट्रासाउंड सेंटर जाने के लिए कह दिया गया। प्रसूता को बिहार में एम्बुलेंस फ्री है… ऐसा पोस्टर तो दिखता है, लेकिन मेरी मां को यह नहीं मिला।
ई-रिक्शा पर झटके सहते हुए घर वाले मेरी मां को उसी हालत में अल्ट्रासाउंड के किसी निजी सेंटर की खोज में निकले, लेकिन दर्द और बढ़ता गया। ऐसा लगा कि उन्हीं की जान चली जाएगी तो अल्ट्रासाउंड की चिंता छोड़ फिर ई-रिक्शे को ही सदर अस्पताल की ओर मोड़ दिया गया। अस्पताल के दरवाजे पर ई-रिक्शे में छटपटा रही मां के गर्भ से मैं निकल आया। शोर मचाया गया तो अस्पताल के स्वास्थ्यकर्मी आए और मां के साथ मुझे भी अंदर भर्ती कराने की प्रक्रिया हो रही थी। मैं तो वहीं पर मरा हुआ बता दिया गया। मां का पता नहीं क्या हो रहा होगा! मेरी मौत पर परिजन काफी आक्रोशित हुए और अस्पताल प्रबंधन पर लापरवाही का आरोप लगाया।
मैं फैसला आपपर छोड़ता हूं कि मेरी मौत का जिम्मेदार कौन है?
– बिहार का एक मृत नवजात
(रविवार को रोहतास सदर अस्पताल में हुई मर्माहत करने वाली इस वारदात का चित्रण पूर्णत: वास्तविक है और इसके पात्र पूर्णत: मौलिक।)
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