Bihar Cabinet ने सुप्रीम कोर्ट के नाम पर गैर-आरक्षित वर्ग का मारा हक, जानें नीतीश-निश्चय

by Republican Desk
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Bihar Caste Census के लिए सत्तारूढ़ जनता दल यूनाईटेड के लोग आज मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को धन्यवाद देने पटना में जुटे हैं। इस बीच सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के नाम पर कोटे में कोटे की मांग पूरी कर दी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जो किया, वह किया। जो नहीं कहा, वह भी कर दिखाया।

महात्मा गांधी की जयंती पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के निर्देश पर बिहार की जातीय जनगणना (Bihar Caste Census) की रिपोर्ट जारी हुई तो राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने ‘जिसकी जितनी आबादी, उतनी भागीदारी’ की आवाज लगाई। इस आवाज पर राज्य मंत्रिमंडल में तो फेरबदल नहीं हुआ, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल (Bihar Cabinet) ने प्रोन्नति में इसे लगाने का जुगाड़ कर दिखाया है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में प्रोन्नति का केस लंबित होने के नाम पर यह प्रयोग किया है। इसके जरिए अब अनुसूचित जाति-जनजाति (SC-ST) के लिए नाम पर कोर्ट में फंसे 17 प्रतिशत पदों को छोड़कर बाकी 83 प्रतिशत में प्रोन्नति दी जाएगी और उसमें 17 प्रतिशत आरक्षण लागू किया जाएगा।
मतलब, वह 17 प्रतिशत सुप्रीम कोर्ट के नाम पर काटकर एससी-एसटी के लिए रखा रहेगा और शेष 83 प्रतिशत में से भी 17 प्रतिशत इनके बीच बांटा जाएगा। जातिगत जगणना के बाद आबादी को देखते हुए इस तरह की मांग आ भी रही थी और चुनाव की तैयारियों के बीच नीतीश सरकार ने एक तरह से इस बड़ी आबादी को लक्षित करते हुए प्रोन्नति के केस में यह प्रयोग कर दिया है।
कैबिनेट बैठक में किस नाम पर निकाला रास्ता
नीतीश कुमार कैबिनेट ने 10 अक्टूबर को ही बैठक की थी। तीन दिन में दूसरी बैठक की गई। इसमें आठ प्रस्तावों पर मुहर लगी। कैबिनेट के फैसलों की जानकारी देते हुए सबसे अहम फैसला प्रोन्नति को लेकर बताया गया। कैबिनेट विभाग के अपर मुख्य सचिव एस. सिद्धार्थ ने कहा- “आज कैबिनेट का सर्वप्रथम और सबसे महत्वपूर्ण विषय है राज्य सरकार के कर्मियों का प्रमोशन। 2016 में मामला कोर्ट चले जाने के कारण अबतक जो व्यवस्था है, उसमें राज्य सरकार के अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रोन्नति नहीं दी जा रही है। सभी कर्मचारी और पदाधिकारी को कार्यकारी व्यवस्था के रूप में अपने ही वेतनमान में उच्चतर प्रभार दिया जा रहा था। जूनियर इंजीनियर के पद और वेतन पर ही बहुत सारे अधिकारी कार्यपालक अभियंता या कुछ तो मुख्य अभियंता की भी जिम्मेदारी निभारी रहे। कई सहायक के वेतन में प्रशाखा पदाधिकारी के पद पर सेवा दे रहे। यही व्यवस्था पुलिस में भी लागू है। सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण के नाम पर प्रोन्नति का मामला विचाराधीन होने के कारण यह स्थिति है। इसलिए, जिस 17 प्रतिशत के नाम पर मामला कोर्ट में है, उसे छोड़ते हुए प्रोन्नति के लिए कैबिनेट ने स्वीकृति दे दी है।

क्या किया गया और क्या प्रभाव होगा- जानिए
अनुसूचित जाति का 16 और अनुसूचित जनजाति का एक प्रतिशत आरक्षण का मामला कोर्ट में है। इसलिए, सरकार ने इन 17 प्रतिशत को फ्रिज करते हुए शेष 83 प्रतिशत सीटों पर प्रोन्नति का रास्ता अपनाया है। अब जो 83 प्रतिशत प्रोन्नति की सीट बचेगी, उसमें प्रोमोशन होगा तो 16 प्रतिशत अनुसूचित जाति और एक प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण होगा। मतलब यह हुआ कि पहले तो 17 प्रतिशत इनके नाम पर छोड़ा गया। फिर 83 प्रतिशत सीटों में से 17 प्रतिशत इनके बीच बांटा जाएगा। यहां यह संशय नहीं कि 83 प्रतिशत का 17 प्रतिशत होगा, बल्कि 83 प्रतिशत जितनी सीटें होंगी, उन्हें कुल सीट मानकर उसपर 17 प्रतिशत सीटें एससी-एसटी के लिए आरक्षित होंगी। इन दोनों श्रेणियों में अगर मानव संसाधन नहीं हो और यह सीटें नहीं भरी जा सकीं तो वह आरक्षित होकर खाली रहेंगी। इन्हें सामान्य के बीच नहीं बांटा जाएगा। इसका प्रभाव यह होगा कि अगर कार्यपालक अभियंता के 100 पदों पर प्रोन्नति दी जानी है तो पहले 17 पदों को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय तक के लिए एससी-एसटी के नाम पर फ्रिज कर छोड़ा जाएगा। फिर 83 पदों में से 17 प्रतिशत, यानी 14.11 पद एससी-एसटी के लिए आरक्षित कर दिए जाएंगे।

प्रोन्नति का फैसला कोर्ट ने रद्द किया तो क्या होगा
सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने में देरी को देखते हुए सरकार ने यह फैसला ले लिया है, लेकिन उसे अंदाजा है कि मामला फंस भी सकता है। ऐसे में सरकार ने एक और विकल्प तैयार किया है। अपर मुख्य सचिव ने बताया कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह प्रोन्नति में भी आपत्ति की और उलटा फैसला आया तो प्रोन्नति वापस ले ली जाएगी। कार्यकारी प्रभार वाली व्यवस्था लागू रहेगी। प्रोन्नति के आधार पर कर्मियों और अधिकारियों को मिला वेतन-भत्ता वापस नहीं लिया जाएगा। वर्तमान व्यवस्था में प्रोन्नति नहीं मिल रही है और उच्चतर कार्यभार में काम करने के बावजूद न तो कागज पर प्रोन्नति के बाद वाला पद मिल रहा है और न ही वेतन-भत्ता आदि।

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