India News : भारतीय कानून में ‘दहेज हत्या’ शब्द नहीं, 16 साल से सरकारें जगाने पर भी नहीं जागीं

जीवन ज्योति, पटना

India News : मायके में, शादी के स्टेज पर या शादी के तत्काल बाद की इनकी तस्वीरों को देखकर इनकी खुशी का अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं। लेकिन, अब यह सब तस्वीरें बनकर रह गई हैं। जन्म देने वाले मां-बाप, राखी बंधवाने वाले भाई और दुख-सुख में साथ रहीं बहनें रो रही हैं। जो जब तक जिंदा रहेगाा, यही कहेगा- काहे को ब्याही बेटी-बहन!

India Today : जिंदा जलाई जा रहीं… ‘हत्या’ नहीं, ‘मौत’ कैसे है यह?

बिहार के सारण की काजल अपने जिले में मायके से कुछ किलोमीटर दूर ब्याही गई। तीन महीने बाद ही ससुराल में मारी गई। पश्चिम चंपारण में पली-बढ़ी मुस्कान की शादी गोपालगंज में हुई। चार महीने बाद ससुराल में मारी गई। नवादा की कृति कुमारी गया में ब्याह कर आई। चार महीने के अंदर ससुराल में मारी गई। मुजफ्फरपुर की रूबी अपने ही जिले में ब्याही गई। चार महीने बाद ससुराल में मारी गई। बांका की नीतू अपने ही जिले में ब्याही गई। शादी के बाद 18 महीने के अंदर ससुराल में मारी गई। गिरीडीह की ज्योति जमुई ब्याह कर आई। 18 महीने के अंदर ससुराल में मारी गई।- यह जब तक अपने मायके में रही होंगी, बगिया की चिड़िया की तरह चहकती-फुदकती रही होंगी। मायके में, शादी के स्टेज पर या शादी के तत्काल बाद की इनकी तस्वीरों को देखकर इनकी खुशी का अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं। लेकिन, अब यह सब तस्वीरें बनकर रह गई हैं। जन्म देने वाले मां-बाप, राखी बंधवाने वाले भाई और दुख-सुख में साथ रहीं बहनें रो रही हैं। जो जब तक जिंदा रहेगाा, यही कहेगा- काहे को ब्याही बेटी-बहन! और, दूसरी तरफ पुलिस की फाइल में इनका नाम ‘दहेज मौत’ लिखकर दर्ज हो चुका है। इनकी प्राथमिकी में पुलिस कहीं-कहीं ‘दहेज हत्या’ (Murder News) लिख भी रही है, लेकिन बड़ा सच यह है कि भारतीय दंड विधान की जगह भारतीय न्याय संहिता 2023 प्रभाव में आने के बावजूद कानून में यह ‘हत्या’ नहीं, महज एक मौत (Dowry Death) है।

IPC से BNS बनाकर क्रांति हुई, मगर बेटियों को बचाने के लिए कुछ नहीं

भारतीय दंड विधान में ‘दहेज हत्या’ को लेकर कानून न था और न ही भारतीय न्याय संहिता 2023 में यह बना। इन बेटियों की मौत कुछ महीनों-वर्षों के अंदर न्यायालय में ‘हत्या’ साबित भी हो जाएगी तो हत्या के लिए दी जाने वाली सजा इन्हें नहीं होगी। वजह वही है, कानून में यह ‘दहेज हत्या’ नहीं, बल्कि ‘दहेज मौत’ है। इनके हत्यारे को ‘हत्या’ नहीं, ‘मौत’ का दोषी माना जाएगा। उसी हिसाब से कुछ साल की सजा होगी और शायद ही किसी केस को ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ मानकर कोर्ट उम्रकैद की सजा देगा। कोर्ट में इन हत्यारों के वकील इन हत्याओं को ‘दहेज मौत’ साबित होने भी दें तो ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ मानकर उम्रकैद की सजा तक पहुंचने नहीं देंगे। यही होता आया है अमूमन। बेटियां हर दिन दहेज के नाम पर मारी जा रहीं, लेकिन इन हत्याओं को लेकर कहीं संजीदगी नहीं। “बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओे” का नारा देने वाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की ओर से 25 दिसंबर 2023 को संसद में अधिनियमित ‘भारतीय न्याय संहिता 2023’ ने भी बेटियों को बचाने की दिशा में दहेज के नाम पर हो रही हत्याओं को लेकर संजीदगी नहीं दिखाई। भारतीय न्याय संहिता 2023 के 80 (1) और 80 (2) में दहेज के कारण होने वाली हत्याओं का जिक्र भी मौतों की तरह ही किया गया है। पहले यह भारतीय दंड विधान (IPC) में धारा 304 बी के रूप में दर्ज था और अब यह भारतीय न्याय संहिता (BNS) 80 (1) और 80 (2) के रूप में दर्ज है।

क्या है दहेज के नाम पर मारी जा रही बेटियों को लेकर मौजूदा कानून

BNS 80 (1) को शब्दश: पढ़ें- “जहां किसी महिला की मृत्यु किसी दाह या शारीरिक क्षति द्वारा कारित की जाती है या उसके विवाह के 7 वर्ष के भीतर सामान्य परिस्थितियों से अन्यथा हो जाती है और यह दर्शित किया जाता है कि उसकी मृत्यु के कुछ पूर्व उसके पति द्वारा या उसके पति के किसी नातेदार द्वारा दहेज की किसी मांग के लिए या उसके संबंध में उसके साथ क्रूरता की गई थी या उसे तंग किया गया था, वहां ऐसी मृत्यु को दहेज मृत्यु कहा जाएगा और ऐसा पति या नातेदार उसकी मृत्यु कारित करने वाला समझ जाएगा।“

इसके बाद स्पष्टीकरण के तहत लिखा गया है कि इस उप धारा के प्रयोजनों के लिए दहेज का वही अर्थ है, जो दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धारा 2 में है। दहेज प्रतिषेध अधिनियम वस्तुत: इस बात की व्याख्या करता है कि ‘दहेज’ कहा किसे जाएगा और किसे नहीं।

BNS 80 (2) में ऐसी मौत के बारे में सजा की व्याख्या इस तरह की गई है- “जो कोई दहेज मृत्यु कारित करेगा, वह कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसकी अवधि 7 वर्ष से काम नहीं होगी और जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी।

न मनमोहन सिंह सरकार ने मानी बात, न नरेंद्र मोदी सरकार ने दिखाई चिंता

थानों में दर्ज प्राथमिकी से लेकर पुलिस की डायरी तक में भले ही ‘दहेज हत्या’ जगह-जगह लिखा जाता हो, लेकिन कानून में यह नहीं है- ऊपर लिखी बातों से आप यह साफ-साफ समझ गए होंगे। दहेज के नाम पर हर साल मारी जा रहीं महिलाओं की संख्या बताने में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) भी ‘दहेज मौत’ का ही जिक्र करता है। उदाहरण के लिए वर्ष 2022 के जारी आंकड़ों को भी देखें तो वहां यही दर्ज है कि उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 2138 दहेज मौतें हुईं, जबकि 1057 मौतों के साथ बिहार दूसरे नंबर पर रहा। मतलब, बहुत साफगोई से सरकारी रिकॉर्ड दहेज हत्या को दहेज मौत बता रहा है। यह शुरू से चला आ रहा है और भारतीय न्याय संहिता (BNS) लागू होने के बाद भी चूंकि कोई बदलाव नहीं हुआ है तो एनसीआरबी की जल्द आने वाली 2023 की रिपोर्ट में भी दहेज हत्याओं को दहेज मौत ही लिखा जा रहा है। RepublicanNews.in को कानून में चल रहे इस खेल और बेटियों की जिंदगी से हो रहे मजाक की पड़ताल के दौरान कई ऐसे तथ्य मिले, जो बताते हैं कि इन हत्याओं को मौत बताने पर आपत्ति आती रही है। हत्या मानने की अनुशंसा और हत्या के लिए लागू सजा देकर दहेज हत्याओं पर लगाम कसने के लिए अनुशंसाएं भी हुईं, लेकिन न 2014 के पहले केंद्र में रही डॉ. मनमोहन सिंह की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA Government) ने तब अनुशंसा मानी और न भारतीय न्याय संहिता लाकर कानून के क्षेत्र में क्रांति की बात करने वाली नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने अब चिंता दिखाई।

राष्ट्रीय महिला आयोग ने 2008 में बदलाव की अनुशंसा की थी

इस पड़ताल के क्रम में सामने आया कि कांग्रेस नेत्री डॉ. गिरिजा व्यास जब राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष थीं, तब ही दहेज के नाम पर हो रही हत्याओं को ‘मौत’ की जगह ‘हत्या’ मानने के लिए कानून में बदलाव की अनुशंसा की गई थी। यह वर्ष 2008 की बात है। तब, 2008-09 में राष्ट्रीय महिला आयोग के पास दहेज प्रताड़ना के लिए देशभर से 2020 और दहेज मौतों के 602 शिकायत-केस आए थे। तब कानून में बदलाव को लेकर की गई अनुशंसा के क्रम में लिखा गया था- “दहेज की तीन तरह की परिस्थितियां होती हैं- एक शादी के पहले, दूसरी शादी के दरम्यान और तीसरी शादी के बाद। तीसरी परिस्थिति न खत्म होने वाला समय होता है।”

हत्या में मौत की सजा हो, सात साल की बंदिश न हो… अनुशंसाएं थीं

राष्ट्रीय महिला आयोग ने अपनी अनुशंसा में तत्कालीन आईपीसी 304बी को संशोधित करने के लिए लिखा था। लिखा गया था कि दहेज मौत कारित करने वाले को न्यूनतम 10 साल से लेकर उम्रकैद या मौत की सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए। कानून में जहां लिखा है कि “मृत्यु के कुछ पूर्व उसके पति द्वारा या उसके पति के किसी नातेदार द्वारा दहेज की किसी मांग के लिए या उसके संबंध में उसके साथ क्रूरता की गई थी” में ‘कुछ पूर्व’ को हटाकर ‘पूर्व कभी भी’ जोड़ने की अनुशंसा की गई थी। शादी के सात साल तक की समय-सीमा खत्म करने को भी जरूरी बताया गया था, ताकि उस अवधि के खत्म होने का इंतजार कर कोई साजिश के तहत ऐसी वारदातों को अंजाम देने से पहले सोचे। इन अनुशंसाओं के साथ दलील भी साफ-साफ दी गई थी कि “सजा इसलिए बढ़ाई जानी चाहिए कि ऐसी मौतें हत्या के बराबर संज्ञेय हैं और इसे हत्या से कम मानने की कोई वजह नहीं है।“ वर्ष 2008 में इस अनुशंसा के साथ राष्ट्रीय महिला आयोग ने यह चिंता भी जताई थी कि “देश का मौजूदा कानून दहेज के नाम पर हो रही हत्याओं को रोकने में सक्षम नहीं है और इन बदलावों के जरिए ही ऐसे जघन्य अपराध पर नियंत्रण की संभावना बनेगी।”

आज कितना चिंतित है राष्ट्रीय महिला आयोग?

वह 2008 की बात थी, जब कानून में बदलाव की जरूरत शिद्दत से न केवल महसूस की गई थी, बल्कि राष्ट्रीय महिला आयोग ने इसके लिए अपनी अनुशंसा भी केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार को सौंपी थी। तब की केंद्र सरकार ने इन अनुशंसाओं पर कुछ नहीं किया। आज के हालात देखें तो राष्ट्रीय महिला आयोग तक 2022-23 में दहेज मौत के 347 मामले पहुंचे, जबकि दहेज के लिए प्रताड़ना के 4534 मामले आए। यह आंकड़ा देशभर से राष्ट्रीय महिला आयोग के पास पहुंची सूचनाओं-शिकायतों का है। दहेज के लिए देश की जवान बेटियों को मारे जाने का सिलसिला पहले के मुकाबले बढ़ा ही है, बस खबरों को तवज्जो दिया जाना कम हो गया है। रिपब्लिकन न्यूज़ ऐसी खबरों के प्रति बेहद संवेदनशील नजरिया रखता है, इसलिए पड़ताल के क्रम में राष्ट्रीय महिला आयोग की मौजूदा गतिविधियों में भी दहेज के प्रति सक्रियता की तलाश की गई। ऐसा कुछ नहीं दिखा, क्योंकि कई वर्षों से या तो राष्ट्रीय महिला आयोग ने दहेज हत्याओं पर केंद्रित बड़ा कोई कार्यक्रम किया नहीं या फिर इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की। राष्ट्रीय महिला आयोग की वेबसाइट पर रोड रेज़ के दौरान महिलाओं पर हुए जुल्म और उसकी जांच की जानकारी तो है, लेकिन दहेज के नाम पर मारी जा रहीं देश की बेटियों को बचाने की दिशा में जमीनी प्रयासों की कोई सूचना कई साल से नहीं है।

समाधान : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की बेटियों को बचाने के लिए बदलें कानून

रिपब्लिकन न्यूज़ की टीम ने कई महीनों तक दहेज हत्याओं को लेकर काम किया और अब जब यह रिपोर्ट पाठकों के सामने है तो हम समाज की जरूरतों को समझ जिम्मेदार पत्रकारिता करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल से सीधी अपील करते हैं कि वह देश की बेटियों को बचाने के लिए भारतीय न्याय संहिता 2023 के 80 (1) और 80 (2) में संसद के जरिए ऐसा संशोधन करें कि दहेज के लिए होने वाली हत्याओं को ‘दहेज मौत’ का नाम नहीं दिया जाए और ऐसे हत्यारों को अन्य जघन्य हत्या के लिए दी जाने वाली कड़ी सजा मिले। कोई निर्दोष नहीं फंसे, लेकिन दोषी के बचने की आशंका खत्म करते हुए कोर्ट को हत्या वाली सजा मुकर्रर करने का प्रावधान मिले। हम ऐसे बदलाव के साथ खड़े होंगे और ऐसा करने से रोकने का प्रयास करने वालों के खिलाफ।

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