Save Daughter : बेटी ब्याहने से पहले जानें भारत के बड़े राज्यों में कैसे हैं हालात

शिशिर कुमार सिन्हा, पटना

Save Daugher Useful Content : शादी-ब्याह के लिए घर में बेटी है तो यह समझना जरूरी है कि बेटियां कहां ज्यादा असुरक्षित। आबादी में अव्वल उत्तर प्रदेश दहेज मौत और ससुराल-प्रताड़ना केस में सबसे आगे है।

Dowry Murder : देश की आधी दहेज हत्याएं बिहार-यूपी में हो रहीं

देश में बेटियों को गर्भ के अंदर अब भी मारा जा रहा है। इसके पीछे वंश चलाने या आर्थिक बोझ जैसे वाहियात कुतर्क गढ़े जाते हैं। लड़कियों की असुरक्षा कुछ वर्षों से एक बड़ा मुद्दा बन गई है। लव जेहाद, रेप, गैंगरेप, छेड़खानी जैसी घटनाएं बहुत ज्यादा सामने आ रही हैं। गर्भ में पल रहे नवजात का लिंग परीक्षण कर बेटी दिखने पर वहीं उनकी हत्या के पीछे एक असुरक्षा का भाव बड़ी वजह बताई जाती है। कोई सरकार इस वजह को कितना वाजिब मानती है, इसपर अलग से बहस हो सकती है। लेकिन, जिस तरह से दहेज के नाम पर देश की बेटियों को मारा जा रहा है, वह बहुत चिंताजनक है। बिहार में सरकारी रिकॉर्ड प्रतिदिन ऐसी तीन मौतों का है तो उत्तर प्रदेश में रोज लगभग छह बेटियां दहेज के नाम पर मारी जा रही हैं। भारत के स्तर पर अपराध के पिछले वर्ष के आंकड़े राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) तैयार कर रहा है। फिलहाल अंतिम आंकड़े वर्ष 2022 के हैं। और, यह आंकड़े डरावने हैं।

कोरोना के खौफनाक दौर में भी बढ़ती रही प्रताड़ना, मौतें नहीं रुकीं

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ओर से पिछले साल वर्ष 2022 में हुए अपराध के आंकड़े जारी किए गए थे। उन आंकड़ों में बताया गया था कि देश में वर्ष 2022 में 28522 हत्याएं हुई थीं। दहेज के नाम पर हुई हत्या को कानून ‘दहेज मौत’ की श्रेणी में रखता है और एनसीआरबी के अनुसार देश में पिछले साल 6450 बेटियां दहेज के नाम पर कुर्बान हुई थीं। एनसीआरबी का आंकड़ा यह बताता है कि 2020 के 6966 के मुकाबले 2021 में 6753 दहेज मौतें हुईं और 2022 में इनकी संख्या घटकर 6450 हो गईं। लेकिन, बिहार में जिस तरह से रोज दहेज के नाम पर विवाहिताओं की जान लेने की खबरें आ रही हैं, उससे ऐसा लगता है कि 2023 और 2024 में आंकड़ा बढ़ा हुआ रहेगा। खैर, यह आंकड़ा नहीं बढ़े- हम यही मनाएंगे। क्योंकि, देश में औसतन रोजाना 17-18 दहेज मौतें हो रही हैं तो उनमें उत्तर प्रदेश और बिहार मिलाकर ही आठ-नौ हैं। मतलब, इन दो राज्यों के लिए यह विशेष रूप से चिंता का विषय है। कानून जिन दहेज मौतों की बात करता है, उसकी शुरुआत पति या ससुराल वालों की प्रताड़ना के रूप में होती है और इसका आंकड़ा साल-दर-साल बढ़ता ही जा रहा है। कोरोना की शुरुआत वाले वर्ष 2020 में जहां 1,11,549 ऐसे केस दर्ज हुए थे, वहीं देशभर में जानलेवा कोरोना के दौर में भी उसके अगले साल पति-ससुराल से प्रताड़ना के 1,36,234 मामले दर्ज हुए। वर्ष 2022 का आंकड़ा जाहिर तौर पर बढ़ना ही था और यह 1,40,019 तक पहुंच गया। लोग कोरोना की मौत से अब डरे हुए नहीं हैं तो विवाहिताओं को प्रताड़ित करने का सिलसिला बढ़ ही रहा है और नए आंकड़े फिर बढ़ते हुए दिखें तो चौंकना नहीं चाहिए। 

देशभर में जितनी दहेज मौतें, उनमें आधी यूपी-बिहार में

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों का अध्ययन करें तो कुछ बातें बहुत स्पष्ट हैं। आबादी के मामले में सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश है और दहेज मौतों की संख्या में भी यह अव्वल है। यहां वर्ष 2022 में 2138 दहेज मौतें हुईं। देशभर में दहेज मौतों की हिस्सेदारी देखें तो उत्तर प्रदेश का प्रतिशत 33.14 है और बिहार इस मामले में 16.38 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ दूसरे नंबर पर है। आबादी के मामले में बिहार देश में तीसरे नंबर पर है, लेकिन 1057 दहेज मौतों के की संख्या के साथ यह उत्तर प्रदेश के बाद खड़ा नजर आता है। इन दोनों राज्यों के अलावा दहेज मौतों की संख्या कहीं भी चार अंकों में नहीं है। यही कारण है कि यह दो राज्य कुल मौतों की लगभग आधी हिस्सेदारी रख रहे हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार को इस बारे में ज्यादा चिंतित इसलिए भी होना चाहिए कि महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में सर्वाधिक दहेज के नाम पर हत्या का ही है। बिहार में 2022 में रेप या गैंगरेप के बाद हत्या का मामला शून्य दर्शाया गया था, महिला के सुसाइड का मामला दो और दहेज हत्या का मामला 1057 था। यह आंकड़ा उत्तर प्रदेश में भी इसी तरह का है। 2022 में यूपी में रेप या गैंगरेप के बाद हत्या का मामला 62, महिला के सुसाइड का मामला 417 है तो दहेज मौतों की संख्या 2138 है।

मध्य प्रदेश और राजस्थान को भी चिंता करनी चाहिए

साल में 518 दहेज मौतों के साथ मध्य प्रदेश तीसरे, 451 संख्या के साथ राजस्थान चौथे और 406 दहेज मौतों की संख्या के साथ पश्चिम बंगाल पांचवें नंबर पर है। ध्यान देने वाली बात है कि आबादी के मामले में मध्य प्रदेश पांचवें, राजस्थान सातवें और पश्चिम बंगाल चौथे नंबर पर है। मतलब, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी हालत चिंताजनक है।

योगी के बाद दीदी के राज में ससुराल की प्रताड़ना सबसे ज्यादा

अपराधियों के घर पर बुलडोजर चलाने के लिए चर्चित रहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का उत्तर प्रदेश पति या ससुराल वालों से विवाहिता को मिलने वाली प्रताड़ना के मामले में भी नंबर एक पर है। आबादी के हिसाब से यह आंकड़ा है। यहां वर्ष 2022 में 20,371 ऐसे केस दर्ज हुए। लेकिन, इससे ज्यादा खराब हालत आबादी के हिसाब से चौथे नंबर पर रहे पश्चिम बंगाल की है। महिला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के राज में विवाहिताओं को शायद बहुत ज्यादा प्रताड़ित किया जा रहा है, तभी उत्तर प्रदेश से बहुत करीब यहां 19,650 केस वर्ष 2022 में दर्ज हुए। जहां 2022 में राजस्थान में दहेज मौतों की संख्या 451 थी, वहीं पति और ससुरालियों से प्रताड़ना के मामले में यह तीसरे नंबर पर है। राजस्थान में 18,847 मामले दर्ज हुए थे। आबादी के हिसाब से दूसरे नंबर का राज्य महाराष्ट्र भले ही दहेज मौतों की संख्या में बहुत कम (180) है, लेकिन पति या ससुरालियों से प्रताड़ना के मामले में इसकी संख्या अच्छी है। यहां 2022 में 11,367 केस दर्ज हुए थे।

बिहार में जिस कारण प्रताड़ना केस कम, वह भी चेतावनी

आबादी के हिसाब से तीसरे नंबर और दहेज मौतों की संख्या के हिसाब से दूसरे नंबर पर रहे राज्य बिहार में पति और ससुराल वालों की प्रताड़ना के केस अपेक्षाकृत बहुत कम (1850) दर्ज हुए। रिपब्लिकन न्यूज़ की दो महीने तक चली पड़ताल में इस बात को समझने का प्रयास किया तो सामने आया कि यहां प्रताड़ना का केस दर्ज कराने की जगह पंचायत, मान-मनौव्वल, पारिवारिक दूरी आदि के रास्ते अख्तियार कर शादी चलाने का प्रयास ज्यादा होता है। ग्रामीण इलाकों में ऐसा ज्यादा होता है। इसी के फेर में कई बार ससुराल लौटने के बाद विवाहिता की हत्या का मामला सामने आता रहता है। इस बात की तसदीक उस आंकड़े से भी होती है, जिसमें बताया जा रहा है कि प्रताड़ना का सर्वाधिक 964 केस कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में दर्ज हुए और उसके बाद दूसरे नंबर पर पटना है, जहां 228 केस दर्ज हुए। मतलब, शहरी क्षेत्र में केस दर्ज कराने का ट्रेंड है, जबकि ग्रामीण इलाकों में टालने के रास्ते देखने की परंपरा कायम है। प्रताड़ना के ऐसे मामलों में तेलंगाना (9996), मध्य प्रदेश (8486) के साथ ओडिशा (5322) भी टक्कर दे रहा है। इस मामले में बिहार की तरह ही झारखंड का भी ट्रेंड है। वर्ष 2022 में झारखंड में ऐसे 850 केस दर्ज हुए। यहां भी पंचायत, मान-मनौव्वल, पारिवारिक दूरी आदि से रास्ता निकालने का प्रयास किया जाता है। झारखंड में दहेज मौतों की संख्या 208 रही थी।

समाधान : समय पर उस दस्तक को समझें, बच जाएगी बेटी

पश्चिम बंगाल में प्रताड़ना के केस ज्यादा हैं और दहेज के नाम पर कम। बिहार की पड़ताल बताती है कि यहां पंचायत, मान-मनौव्वल, पारिवारिक दूरी जैसे रास्तों से शादी को चलाने का अंतिम प्रयास किया जाता है। संकट यहीं है और समाधान की संभावना भी इसी जगह नजर आती है। बिहार की प्रसिद्ध साइकोलॉजिस्ट डॉ बिंदा सिंह कहती हैं कि “प्रताड़ना सहते रहने की सीख देना बंद कर दें, क्योंकि बेटी आपका अंश है। जिम्मेदारी है। आपके घर की खुशी है। उसे गंवाने के बाद पछताने से बेहतर है कि समय पर खतरे का संकेत समझ जाएं और उसे बचा लें। जिससे यह खतरा लगा, उसे सबक देने की जिम्मेदारी कानून की है, लेकिन आपको आगे तो आना ही होगा। इसमें हिचक नहीं होनी चाहिए। बस, यह ध्यान देना चाहिए कि कोई गलत न फंसे।”

जय प्रकाश विश्वविद्यालय के असिस्टेंट लेक्चरर और मनोवैज्ञानिक डॉ. मनोज कुमार कहते हैं कि “शादी से पहले परिवारों का सामाजिक मूल्यांकन किया जाना चाहिए। समय देकर बातचीत से मनोभावों को समझना चाहिए। शादी के बाद दहेज या किसी बात पर शारीरिक या अधिक मानसिक प्रताड़ना एक दस्तक है, जिसे समझना चाहिए। नाजों से पली हो या अभाव में, बेटी तो बेटी है। उसकी जान पर आफत का दस्तक वही प्रताड़ना है। उसे समय पर समझना चाहिए और एक बार भी लगे कि यह शादी चलाने में बेटी बहुत कुछ सह रही है तो प्रताड़ना के खिलाफ कानून की शरण लेनी चाहिए। महिला हेल्पलाइन या महिला थाना पहुंचने से भी सामने वाले पर दबाव बनता है। उसके अंदर कुछ तो डर रहेगा।”

उत्तर प्रदेश के प्रख्यात ज्योतिष विशेषज्ञ श्लोक मणि त्रिपाठी इसे और स्पष्ट करते हैं। उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल पर भी लोगों को जागरूक करने के लिए लिखा है- “मैं सभी को यह राय देता हूं कि सगाई और शादी के बीच कम से कम छह महीने का अंतराल ज़रूर रखें। इतने समय में कभी न कभी इंसान का मुखौटा उतर ही जाता है। अक्सर लोग कहते हैं कि नहीं, लंबा गैप होने से सगाई टूटने का अंदेशा रहता है। तो भई, अगर सामने वाला छह महीने सगाई नहीं निभा पाए तो शादी क्या ख़ाक निभाएगा? ऐसी सगाई का तो टूटना बेहतर।” एक ज्योतिष विशेषज्ञ की यह सलाह दहेज हत्याओं को रोकने में भी समाधान का रास्ता लगती है।

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