लालू यादव ने किया तो नीतीश कुमार भी करेंगे… यह कौन-सी बात?
भारत (India) देश और लोकतंत्र की जन्मदात्री धरती बिहार (Bihar) की नब्ज़ पर हाथ रखी तो आवाज निकली- ‘जन-गण-मन’। वह क्यों भई? अभी कोई स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस तो है नहीं। दरअसल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भाई साहब… भारी मिस्टेक हो गया है। दुनिया के 20 देशों के खिलाड़ी जुटे थे। खेल सेपक टेकरा का होने वाला था। खेल भारत के राष्ट्रगान से हो गया। एक बार तो साहब (Nitish Kumar) ने राष्ट्रगान की मुनादी होने के बाद रुकना मुनासिब नहीं समझा। एक बार राष्ट्रगान शुरू होते समय सावधान तो हुए, लेकिन फिर विश्राम के साथ ही नीचे खड़े मीडियाकर्मियों से इशारे में बातें करने लगे। नमस्कार करने लगे। अब जिद देखिए। गलती हुई तो मान लें। लेकिन, यह तो होने से रहा। आपको तो सब पता ही है। 2005 के पहले यह सब होता था जी? तो, हम कहेंगे कि यह सब होता रहा है। वह अकड़ में इसे गलती नहीं मानते थे। यह तो इसे बस यूं ही… गलती नहीं मान रहे। वजह भी जानिए। कारिंदे कह रहे- लालू यादव ने भी तो ऐसा किया था। यह कौन-सी बात है भई?
मान लीजिए, अगर बीमार हैं तो
हम पुरानी सारी बातें भूल जाएंगे। मान लेंगे कि डिमेंशिया, अल्ज़ाइमर रोग, एम्नेसिया, मनोभ्रंश हो गया। उम्र का तकाजा नहीं होगा, फिर भी मान लेंगे। लेकिन, आप तो मानने के लिए ही तैयार नहीं हैं कि बीमार हैं। या, बीमार नहीं भी हैं तो उम्र का ही असर मान लीजिए। यह कौन-सी जिद है कि नहीं मानेंगे! राह चलते लोग आपको चार बात कह रहा है। जिस विपक्ष के पास सीना ठोक कर उदाहरण (पढ़ा-लिखा सुसभ्य नेता) दिखाने की हिम्मत नहीं, वह सीने पर चढ़कर नाच कर रहा है। नाचेगा भी क्यों नहीं भला! स्टेज तो आपने ही बनाकर दिया है। आप ही खुले मंच पर इतना कुछ कर आए हैं कि मौका मिल गया है। मौका भी ऐसा-वैसा नहीं। विधानमंडल सत्र जैसा। जमकर मजा ले रहा है विपक्ष। आपने मंच पर एक-दो स्टेप दिखाए तो वहां मौजूद दर्शकों ने भले मजा नहीं लिया, वायरल वीडियो से आंखें तो सब सेंक रहे हैं। इसलिए, अच्छा तो यही हो कि मान लीजिए अगर बीमार हैं। नहीं तो यही मान लीजिए कि नहीं सुने थे एनाउंसमेंट। दिमाग पर दोष न मढ़ना हो तो कान पर ही फोड़ दीजिए सारा ठीकरा। मगर, अपनी कान भी छूने से डर रहे हैं।
अब भूलने वाला मीडिया भी नहीं
चुनावी मौसम है। आप भूल जाइएगा। विपक्ष को भी बहुत समय याद नहीं रहेगा। लेकिन, यह तो समझिए कि लालू यादव के दौर वाला मीडिया नहीं है। विज्ञापन रोकने की सीधी धमकी देकर खबर रोक लेने का दौर नहीं है यह। मुख्य धार की मीडिया को आप बहला-फुसला-समझा कर रोक लीजिएगा। लेकिन, डिजिटल-वेब मीडिया और सोशल मीडिया को आप कहां से नियंत्रित कर सकेंगे सरकार! आप ही नहीं, आपके सारे मंत्री… अरे आपके विपक्षी भी, संबोधन करते हैं- “प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के हमारे साथियो।” आप तो डिजिटल-वेब मीडिया को तवज्जो ही नहीं दे रहे। अस्तित्व ही नहीं समझ रहे। और, सोशल मीडिया पर नियंत्रण की आपकी पॉलिसी तो माशाअल्लाह! सारी जानकारी आपने जुटा ली। उन कुछ को नियंत्रित कर लीजिएगा। लेकिन, फिर वही बात दुहरा रहा कि अब भूलने वाले मीडिया का जमाना नहीं। इंटरनेट महाराज सबसे बड़े महाराज हैं। गूगल कीजिएगा तो आपके नाम के साथ यह सब निकल आएगा। आज भी। कल भी। कहीं भी। कभी भी। तो, भलाई इसी में है कि मान लीजिए गलती। चुनावी साल में बार-बार यह सब लोग देखेंगे तो आपके साथ दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी कहकर चौड़ी होने वाली भारतीय जनता पार्टी का भी बेड़ा गर्क हो जाएगा।
और, गलथेथरी-डर खत्म कराइए
साहब हैं आप। आपके आसपास वाले नहीं बताएंगे। हम तो नब्ज़ पकड़ने वाले हैं। सो, बता देते हैं। दो ही तरह के लोगों से आप घिरे हैं। एक आंख बंदकर आपके लिए गलथेथरी करने वाले और दूसरे आपसे सहमे हुए। गलथेथरी करने वाले पार्टी में भी हैं और अफसरशाही में भी। निंदक तो आपने आसपास रखा ही नहीं है सरकार! गलथेथरी करने वाले मौज काट रहे हैं। वह हर समय आपके जयकारे लगाकर आपकी हर बुरी बात को भी कहेंगे… ठीक ही तो कह रहे हैं। यह वही लोग हैं, जो जमीन खोए बैठे हैं। कभी आम आदमी बनकर इनसे संपर्क की कोशिश कीजिए। जिंदा रहते नहीं कर पाएंगे। चाहे, जिस अफसर की बात कर लीजिए। क्यों, पता है? इन्हें पता है, बिगड़ेगा तो राजा का ही। उनका क्या है! रिटायर होने के बाद भी जयकारे के कारण ढो लेंगे आप। नहीं तो पेंशन क्या कम है! हां, दूसरे वाले भी हैं। वही, जो डरे हुए हैं। वह भी नहीं कहेंगे कि आपने गलती की है। उन्हें डर है कि कहेंगे तो नप जाएंगे। दांत निपोरने वाले निपटा देंगे कि साहब को गुस्सा दिलाते हो, जाओ भाड़ में! अब फिर अंत में एक ही बात कहेंगे- उम्र न सही, बीमारी न सही… कोलाहल के बीच सुनने में हुए अवरोध के कारण ही ऐसा हो गया, यही मान लीजिए।