Bihar News में आज एक ऐसी खबर जो आपको हैरत में डाल देगी। आज जारी हुए इंटर के रिजल्ट ने बिहार की एक नई कहानी सामने लाई है। एक ऐसा गांव है जहां से पहली बार किसी बेटी ने इंटर की परीक्षा पास की है।
आजादी के 76 साल! बहुत बड़ा वक्त होता है। कितने वक्त में देश और बिहार कितना बदल गया। लेकिन, महादलितों के इस गांव में वक्त मानो आजादी के पहले भी ठहरा हुआ था और 76 साल बाद भी उसी हालत में था। और, अब अचानक वह गांव चर्चा में है। क्योंकि वहां शिक्षा की रोशनी पहुंची ही नहीं, बल्कि अब दमक रही है। बचपन बचाओ, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ..अचानक ऐसे नारे वहां सार्थक नजर आने लगे हैं। क्योंकि किसी ने पहली बार वहां इंटर की परीक्षा पास की है।
महादलित बस्ती से पहली बार किसी बेटी ने पास किया इंटर
सीतामढ़ी जिले के परिहार प्रखंड का दुबे टोला गांव। ऐसा गांव जहां शिक्षा की रौशनी से बेटियां अंजान थीं। तभी तो पहली बार किसी बेटी ने इंटर की पढ़ाई पूरी कर ली है। गांव की बेटी के इंटर की परीक्षा में पास होने के बाद यह इलाक़े में चर्चा का विषय बना है। छात्रा इंदिरा कुमारी इस दुबे टोल गांव के महादलित बस्ती से इंटर की परीक्षा पास होने वाली पहली बेटी बन गई है। इंदिरा ने इंटर का एग्जाम फर्स्ट डिवीजन से पास किया है।
बचपन बचाओ आंदोलन ने इंदिरा को दी पढ़ने की शक्ति
इंदिरा ने इंटर पास करने का श्रेय ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ को दिया है। परीक्षा परिणाम आने पर ग्रामीणों ने इंदिरा के शिक्षक चंदन मांझी के साथ उसके घर जाकर इंदिरा को बधाई दी। इंदिरा कुमारी ने इस सफलता का श्रेय अपने माता-पिता, शिक्षक चंदन मांझी एवं बचपन बचाओ आंदोलन को दिया है। महादलित बस्ती के प्रथम स्नातक युवा सह सदस्य बाल संरक्षण समिति चंदन मांझी का कहना है कि इंदिरा के परीक्षा पास होने से गांव में इतिहास लिखा गया है। यह लंबे समय से चल रहे अथक प्रयास का परिणाम है।
तमिलनाडु में मजदूरी करते हैं पिता, बेटी ने लहराया परचम
इंदिरा कुमारी के पिता महेश मांझी तमिलनाडु में मजदुरी करते हैं। जबकि मां निर्मला देवी गृहणी हैं। इंदिरा अपने दो भाई एवं एक बहन में सबसे बड़ी है। खास बात यह है कि इंदिरा कुमारी बचपन बचाओ आंदोलन की ओर से गठित बाल समिति की सदस्य भी है। इंदिरा इस उम्र में अपने गांव की लड़कियों को शिक्षा के प्रति जागरूक करती है। ग्रामीण बताते हैं कि इंदिरा से प्रेरित होकर अब अन्य अभिवावक भी अपनी बेटियों के शिक्षा के प्रति जागरूक हुए हैं।
बचपन बचाओ आंदोलन भारत में एक आन्दोलन हैं जो बच्चो के हित और अधिकारों के लिए कार्य करता हैं। वर्ष 1980 में “बचपन बचाओ आंदोलन” की शुरुआत कैलाश सत्यार्थी ने की थी जो अब तक 80 हजार से अधिक मासूमों के जीवन को तबाह होने से बचा चुके हैं। बाल मजदूरी कुप्रथा भारत में सैकड़ों साल से चली आ रही है। कैलाश सत्यार्थी ने इन बच्चों को इस अभिशाप से मुक्ति दिलाना ही अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया है।
बेटियों को मिल रहे प्रोत्साहन से भी बढ़ी हिम्मत
महादलित बस्ती से पहली बार किसी बेटी के बारहवीं पास होने पर ग्रामीण कहते हैं कि लड़कियों को शिक्षा के लिए सरकार की ओर से मिल रहे प्रोत्साहन के कारण भी अभिभावक अब बेटियों को पढ़ाने की हिम्मत जुटा रहे हैं। ग्रामीण मानते हैं कि शिक्षा व्यवस्था में सुधार हुआ है। लेकिन अभी काफी सुधार की जरूरत है।